नई दिल्ली: भारत का स्पेस प्रोग्राम वैसे भी इतिहास लिखने के लिए जाना जाता है और ऐसे में आज का दिन भी बेहद ख़ास होने जा रहा है। आज (सोमवार को) सुबह 7 बजे से 11 बजे के बीच एक ख़ास प्रक्षेपण यान (आरएलवी) आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरेगा… और ये ख़ास इसलिए होगा, क्योंकि एक तो ये स्वदेसी है और दूसरा ये फिर से इस्तेमाल किया जा सकने वाला स्पेस शटल है। हमारे साइंस एडिटर पल्लव बागला इस मिशन की एक्सक्लूसिव जानकारियां दे रहे हैं इस रिपोर्ट में…
आज भारत अपने पहले स्वदेशी स्पेस शटल को अंतरिक्ष में भेजकर अपनी क्षमताओं को परखेगा। 600 इंजीनियर बीते पांच सालों से इस सपने को साकार करने में जुटे थे। अगर सब ठीक रहा, तो मिशन इस तरह पूरा होगा…
- ये भारत का स्पेस शटल यानी कि रियूजेबल लॉन्च व्हेकिल है।
- इसे श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा जाना है।
- इसके हूबहू स्केल मॉडल को लेकर एक विशाल रॉकेट उड़ान भरेगा।
- बूस्टर रॉकेट, आरएलवी यानी स्पेस शटल को आवाज़ से पांच गुनी रफ्तार देगा।
- फिर बूस्टर रॉकेट इससे अलग हो जाएगा।
- स्पेस शटल धरती से करीब 70 किमी की ऊंचाई को चूमेगा।
- नीचे का रुख करने से पहले किसी प्लेन की तरह हवा में परवाज़ करेगा।
- वापसी के दौरान घर्षण की गर्मी से बचाने के लिए इसमें बेहद खास तापरोधी टाइल्स लगी हैं।
- अपने डेल्टा डैने की मदद से ये समंदर में पहले से तय रनवे पर किसी प्लेन की तरह उतर आएगा।
दरअसल, दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले लॉन्च व्हीकल का मकसद अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजने के खर्च को कम करना होता है। अभी तक केवल अमेरिका और रूस के ही स्पेस शटल सफल रहे हैं।
विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक के सिवन ने कहा, ‘मौसम अच्छा है और प्रक्षेपण की उल्टी गिनती निर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप हो रही है।’ आरएलवी प्रौद्योगिकी प्रदर्शन (आरएलवी-टीडी) का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह पहुंचाना और फिर वायुमंडल में दोबारा प्रवेश करना है, यान को एक ठोस रॉकेट मोटर से ले जाया जाएगा। नौ मीटर लंबे रॉकेट का वजन 11 टन है।
6.5 मीटर लंबे ‘विमान’ जैसे दिखने वाले यान का वजन 1.75 टन है और इसे एक विशेष रॉकेट वर्धक से वायुमंडल में पहुंचाया जाएगा। आरएलवी-टीडी को दोबारा प्रयोग में लाए जा सकने वाले रॉकेट के विकास की दिशा में ‘एक बहुत प्रारंभिक कदम’ बताया जा रहा है। इसके अंतिम संस्करण के निर्माण में दस से 15 साल लगने की संभावना है। इसरो पहली बार पंखों वाले उड़ान यान का प्रक्षेपण कर रहा है। सरकार ने आरएलवी-टीडी परियोजना में 95 करोड़ का निवेश किया है।
साभार:ndtv इंडिया वेबसाइट