कुशीनगर : सरकार ने महज साढे सात करोड़ के राजस्व के लिए 36 गांवो के 1 लाख की आबादी के जीवन का सौदा कर लिया है और अवैध ढंग से की गयी लीज को जिलाधिकारी सही साबित करने में लगे हैं। ये बाते कहते हुये विधायक अजय कुमार लल्लू ने जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार पर जमकर हमला बोला.
साथ ही बड़ा आरोप लगाते हुये कहा की जनता की सेवा और हित के लिए नियुक्ति पाया अधिकारी कुछ चंद रूपयों के लिए अपनी जवाबदेही से नहीं मुकर सकता है।
उन्होनें बालू खनन के लीज को लेकर जिलाधिकारी के रूख पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बाढ़, तटबंध और जल संसाधन से जुड़े मामलों के लिए अलग से ही विभाग का गठन किया गया है।
जो तटबंधों की की देखरेख, सुरक्षा और मरम्मत के लिए कार्य करता है, इस मामले से जुड़े विभाग के आला अधिकारियों प्रमुख अभियंता (अनुसंधान एवं नियोजन) बाढ, सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग उत्तरप्रदेश, मुख्य अभियंता (गण्डक), सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, उ.प्र. गोरखपुर और अधिशासी अभियंता, बाढ़ खण्ड कुशीनगर के बालू खनन से तटबंधे के खतरे की आशंका के रिपोर्ट और बालू खनन को रोकने के अुनरोध को दरकिनार करते हुए बालू खनन की वैद्यता का जायज ठहराने की कोशिश साबित करता है कि जिलाधिकारी की मंशा जनता की सेवा और हित के लिए नहीं है बल्कि वह माफियाओं व राजनेताओं के सांठ गांठ से की गयी अवैद्य बालू खनन को सही ठहराने की है।
जो विभाग इसके लिए जवाबदेह है, उसकी राय तक नहीं ली गयी और आनन फानन में बालू खनन का लीज कर दिया गया। इसलिए जिलाधिकारी अपने तानाशाही पूर्ण रवैये में बदलाव करे।
बालू खनन के तीन पट्टों से सरकार को महज सात करोड़ पैंतालीस लाख अट्ठाइस हजार चार सौ साठ रूपये का राजस्व मिलेगा। इस तटबंध से 36 गांव और एक लाख की आबादी की सुरक्षा होती है। इस इलाके में एक आदमी की कीमत मात्र 750 रूपये और गांव की कीमत 20 लाख रूपये ही है, जिसके लिए सरकार और उसमें बैठे हुए लोग ग्रामीणों के जीवन और गांवों के अस्तित्व से समझौता कर रहे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है।
उन्होनें बताया कि गंडक नदी की तेजधारा में अंडर करंट सबसे अधिक होता है, बालू खनन से बांध टूटने की प्रबल संभावना है, जिससे 36 गांव और एक लाख की आबादी पर खतरा मंडरा रहा है। अहिरौलीदान पिपराघाट तटबंध इस प्रदेश में सबसे अधिक संवेदनशील तटबंधों में शुमार है जिसकी सुरक्षा और मरम्मत के लिए हर एक साल करोड़ो रूपये खर्च करना पड़ता है। 1958 में बना यह तटबंध काफी पुराना और जर्जर हो गया है, इसके कारण गंडक की पानी से तटबंधे को 1984, 2002, 2007 और 2012 में बाढ़ की स्थिति बनी और ग्रामीणों को जान माल का नुकसान उठाना पड़ा था।
कहा कि सरकारी हीला हवाली और लीपा पोती से ही ग्रामीणों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है। सरकार की नीतियों का खामियाजा ग्रामीण भुगतते है। सरकार ग्रामीणों के स्वावलम्बी और स्वाभिमानी जीवन पद्वति का नाश कर सरकारी योजनाओं के लिए लम्बी लाइन में खड़ा कराना चाहती है, ताकि लोग हाथ जोड़ कर नेताओं और अधिकारियों के आगे पीछे मंडरायें। इसिलिए जिलाधिकारी गंडक नदी के प्रवाह मुडने को प्राकृतिक आपदा बता रहे हैं।
वहीं विधायक ने सभी राजनैतिक दलों, संगठनों, छात्रों, नवजवानों, किसान, मजदूर और व्यापारियों से अपील करते हुए कहा कि 36 गांवों के अस्तित्व और 1 लाख लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए बालू खनन के विरोध के लिए आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभायें। सभी लोग मिलजुलकर लड़ेंगे तो तटबंध, गावं और ग्रामीणों की सुरक्षा कर पायेंगे।।