Thursday, April 25, 2024
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय बैजनाथ प्रसाद वर्मा जी की पुण्यतिथि मनाई गयी

कुशीनगर (प्रभात): शनिवार को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय बैजनाथ प्रसाद वर्मा जी की पुण्यतिथि उनकी समाधि स्थल बांसी घाट पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई तत्पश्चात जंगल बनवीरपुर में श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन कर स्वतंत्रता सेनानी के चित्र पर दीप प्रज्वलित कर श्रद्धा सुमन अर्पित की गई.

तथा समारोह को संबोधित करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता चंद्रभान कुशवाहा ने अपने संबोधन में कहां की स्वर्गीय बैजनाथ प्रसाद वर्मा वह कर्तव्यनिष्ठ ईमानदार तथा देश के प्रति समर्पित क्रांतिकारी बताते हुए कहां की स्वर्गीय श्री वर्मा 1931 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की तथा 1940 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन का आंदोलन का आवाज बुलंद किया.

क्रांतिकारियों के साथ मिलकर रेलवे लाइन उखाड़े टेलीफोन का तार काट काटे तथा अंग्रेजो के खिलाफ रात-रात भर गांव-गांव सभाएं की इसी क्रम में दुदही का डाकखाना फूका इसी घटना के कुछ दिन बाद शहीद बाबूराम कुशवाहा के साथ मंसाछापर में सभा कर रहे थे जिसमें अंग्रेज पुलिस की फायरिंग में जांबाज साथी बाबूराम कुशवाहा को गोली लगी उस समय स्वर्गीय बैजनाथ वर्मा चाकू से गोली निकालें परंतु बाबूराम कुशवाहा को बचा नहीं सके.

इस संबंध में अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार करने के लिए छापेमारी की परंतु आंदोलन उन्होंने जारी रखा सन 1941 में छापे के दौरान गिरफ्तार कर लिए गए और डीआईआर के तहत 5 अप्रैल 1941 को 1 वर्ष की कठोर सजा तथा 100 रूपये का जुर्माना लगाकर जिला कारागार गोरखपुर में रखा गया.

श्री कुशवाहा ने कहा कि 100 रुपए का जुर्माना भरने के लिए उनके पिता स्वर्गीय राम लखन बर्मा ने 10 कट्ठा खेत बेच कर दिया तत्पश्चात गोरखपुर जिला कारागार में बीमार पड़ने के बाद लखनऊ कारागार में भेज दिया गया और 45 दिन हॉस्पिटल में रखा गया.

वहा एक दिन डॉक्टर सर्जन रिपोर्ट किया कि राजनीतिक कैदी मर गया और जांच का प्रमाण पत्र दिया जांच करते जब उन्हे दूसरे सर्जन डॉक्टर को देखा तो आंखों में आंसू आ गए डॉक्टर को टोका की जीवित व्यक्ति को मृतक कैसे घोषित कर दिया.

1944 मे डीआईआर के तहत कठोर सजा कांटे तथा उन्होने माफी नहीं मांगी सन 1945 में जेल से रिहा होकर घर आए  15 अगस्त 1947 में आजादी का समाचार सुन कर उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहाने लगे.

अपने समर्थकों के साथ शहर में जुलूस निकालकर खुशी का इजहार किए 26 अगस्त 2005 को उनकी मृत्यु  हो गई.

इस दौरान बैठक की अध्यक्षता करते हुए स्वर्गीय सेनानी जी की पत्नी सोना देवी जी ने कहां की अंग्रेजों के दबाव और छापे से बचने के लिए इधर उधर आने के कारण खाना जंगल झाड़ियों में टोकरी में रखकर चुपके से पहुंचाया जाता था.

इस कार्यक्रम का संचालन अमित कुशवाहा ने किया जिसमें प्रमुख रुप से पारसनाथ वर्मा, विनोद वर्मा, विश्वनाथ प्रसाद कुशवाहा, राजेंद्र प्रसाद वर्मा, बीएन गुप्ता, बंशी प्रसाद, हरि कुशवाहा, विनोद प्रसाद वर्मा, अजय कुमार वर्मा, हरेंद्र कुमार वर्मा, रामू वर्मा, प्रेम वर्मा, सुरेश वर्मा, बीके लाल कुशवाहा, सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे.

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